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हमारा भी एक जमाना था...

हमारा भी एक जमाना था... खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, ना ही स्कूल भेजने के लिए तैयार कर के बस तक या स्कूल तक ड्राप कर आने की। खुद ही समय देख कर तैयार हो कर स्कूल जाना होता था। नहीं तो घर में कूटे जाने का डर था। माँ पापा ही नहीं कोई भी बड़ा कूट सकता था। पड़ोस के चाचा लोग भी। और देर से स्कूल पहुँचने पर मास्टर जी द्वारा कूटे जाने का। स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे। उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था। ना ही हमें। पास/फेल यही हमको मालूम था। परसेंटेज से हमारा कभी संबंध ही नहीं रहा। ट्यूशन का चलन बस बड़े घरों में था। बाकि घर में दीदी, बुआ, चाची ये ही हमारे ट्यूटर हुआ करते थे। किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी। विद्या कसम की इतनी वैल्यू हुआ करती थी कि कोई भी विद्या कसम खिला कर सच उगलवा ले। विद्या कसम खा कर भी झूठ बोलने वाले को उसके दोस्त ही घटिया समझने लगते थे। इस शर्मिंदगी को कोई नहीं झेलना चाहता था। कपड़े की थैली में, बस्तों में, और एल्यूमीन

क्या कहिए

ना रवा कहिए, ना सजा कहिए दर्द ए दिल को ही शिफा कहिए  दिल लगाने की सजा मिलती है क्यों ना ऐसे शै को खता कहिए  वो देते तो थे, वफ़ा की मिसाल छोड़िए, उन्हें मत बेवफ़ा कहिए  आँचल की छाँव मिली जिसकी क्यों ना उस माँ को खुदा कहिए  यूँ ठहर के उनका पलकें उठाना हया कहिए उसे के अदा कहिए  छोड़ जाए परिंदा बहार में शजर खिजां नहीं तो और क्या कहिए

फिजायें बोझिल हैं, शाम भी बे मज़ा सी है

फिजायें बोझिल हैं, शाम भी बे मज़ा सी है। अश्कों से भीगा फलक, कैसी ये उदासी है? ज़ख़्म हरा कर जाती हैं वो यादें बहारों की, बरसात की बूँदें आज लग रही सजा सी है। खाली खाली सा था फ़लक, दिल की तरह, के कौस ए क़ाज़ाह ने तेरी अक्स तराशी है। तुझसे ही क्या शिकवा करूँ मैं बेवफ़ाई का, मौसम की दिल-फरेबी भी तो बेवफ़ा सी है। शम्मा को गुरुर होगा शान ए बज़्म होने का, मगर परवाने के बिना महफ़िल तन्हा सी है। परिन्दे भी आज छोड़ गए खिजाँ देख कर, लगे जैसे 'शजर' ने ही की कोई खता सी है।

आ मेरे होठों पर अपनी प्यास रख जा

आ मेरे होठों पर अपनी प्यास रख जा मुहब्बत का हसीं वो अहसास रख जा मेरा दिल तो कब से तेरे पास है पड़ा तू भी दिल अपना मेरे पास रख जा मुहब्बत में फ़ना होने को जो दिल करे छुपा के चाहत में होशो हवास रख जा आ हो जाएँ दो जिस्म एक जान हम ऐसे मेरी साँसों में अपनी साँस रख जा तू पास नहीं हो तो भी अक्स दिखे तेरा ऐसी अपनी कोई मूरत तराश रख जा शाम ए 'शजर' सुरमई हो तेरे वजूद से सुकून ए ज़िंदगी ऐसा तालाश रख जा

होगी भले तमन्ना ये तेरी देखने की मेरे आँसू

होगी भले तमन्ना ये तेरी देखने की, मेरे आँसू पर अश्क़ ए दर्द ए दिल, हमेशा ही नहीं होता अपनों पर भरोसा कीजिये, मगर सम्भल कर कोई दुश्मन ही क़ातिल, हमेशा ही नहीं होता डूब जाती है सफ़ीना बिच धार में भी आइंदा गुनहगार सिर्फ साहिल, हमेशा ही नहीं होता कई बार बिछड़ जाता है हमराही बिच राह में राह ए इश्क़ का मंजिल, हमेशा ही नहीं होता दिल लगाने से पहले इक सबक लीजिये हुजूर उल्फत का कुछ हासिल, हमेशा ही नहीं होता ये आशिकी इक सेज है काँटों से भरा 'शजर' फूलों से सजा महफिल, हमेशा ही नहीं होता

तेरी खुशबू से महकी ये फ़िज़ा कुछ कह रही थी

तेरी खुशबू से महकी ये फ़िज़ा कुछ कह रही थी जो छू कर आयी तुझे, वो हवा कुछ कह रही थी मैं उलझा रहा तेरे लटों के पेंच ओ खम में मगर शानो पे बिखरे जुल्फों की घटा कुछ कह रही थी मैं इंतज़ार करता रहा लबों की जुम्बिश का मगर झुकी झुकी तेरी नज़रों की हया कुछ कह रही थी मैं करता रहा दुआ लरजने की तेरी बाहों में मगर मासूमियत से लबरेज तेरी अदा कुछ कह रही थी मैं ढूंढता रहा इकरार तेरी आँखों में डूब के मगर चोरी चोरी मुझे देखने की खता कुछ कह रही थी मैं समझ ना सका गुफ़्तगू तेरी निगाहों की मगर तू रुख से अपने ये नकाब हटा कुछ कह रही थी

तेरा दर्द मेरे जीने की वजह बन गया

तेरा दर्द मेरे जीने की वजह बन गया के अब तो दर्द ही दर्द का दवा बन गया कभी तुझे खोने के दर्द से डर लगता था तू नहीं है तो वो दर्द ही हमनवा बन गया तू जब से गया छोड़ के राहों में अकेला तभी से ये दर्द ही मेरा रास्ता बन गया डराता था दर्द जब नहीं जानता था इसे समझा तो जिंदगी का फलसफा बन गया सूखे जख्मों के दर्द चुभते हैं ज्यादा याद आयी तेरी तो जख्म हरा बन गया जब दर्द नहीं रहता शजर तो होता है दर्द दर्द जो होता है सजा अब मजा बन गया