और मैंने देर कर दी
सपने देखने की जो उम्र आयी थी
बचपन की दहलीज लांघ कर
अल्हड़पन की शाम लायी थी
जो मसरूफियत से माँग कर
उलझे पड़े थे मजबूरियों के साथ
मैं और मेरे हालात
सपने करते रहे इंतज़ार
और मैंने देर कर दी
वो आयी थी झोंके की तरह
महकती हुई ताज़ी हवा की
नेमतों से भरी एक नेमत थी
कुबूल होती कोई दुआ सी
समझ ना सके उसके जज्बात
मैं और मेरे हालात
वो चाहती रही थोड़ा सा प्यार
और मैंने देर कर दी
तमाम मुरव्वतों के बाद भी
बेमुरव्वती थी अभी जिन्दा
फासले कहीं दूर खड़े थे
बेबस से, हारे हुए और शर्मिंदा
थामने ना दिए वो बढ़े हाथ
मैं और मेरे हालात
ख्वाहिस जगते रहे बार बार
और मैंने देर कर दी
किस्मत की मेहरबानी थी
आ ही गया वो मंजर
ले सवाल आँखों में
था दर पे खड़ा दिलवर
रोक दिए हलक में अल्फ़ाज़
मैं और मेरे हालात
वो पलटी थी आखिरी बार
और मैंने देर कर दी
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